by Lokendra kumar
अपनों में सिमटी
ममता में लिपटी
खुद में खपती
जीवन तुम रचती
काया में ढलती
प्रेम में पिघलती
सतत तुम जलती
प्राथना में रमती
जीवन तुम रचती
मोह तुम करती
माया में फसती
निर्माण करती
वंश चलाती
जीवन तुम रचती
अपनों में सिमटी
ममता में लिपटी
खुद में खपती
जीवन तुम रचती
आशा तुम जगाती
निराशा भगाती
सृजन तुम करती
उथान करती
जीवन तुम रचती
प्रज्ञा बढाती
गौरव तुम लाती
रेगिस्तानी जड़ता मिटाती
हरियाली सजाती
जीवन तुम रचती…
जीवन तुम रचती…
अपनों में सिमटी
ममता में लिपटी
खुद में खपती
जीवन तुम रचती
काया में ढलती
प्रेम में पिघलती
सतत तुम जलती
प्राथना में रमती
जीवन तुम रचती
मोह तुम करती
माया में फसती
निर्माण करती
वंश चलाती
जीवन तुम रचती
अपनों में सिमटी
ममता में लिपटी
खुद में खपती
जीवन तुम रचती
आशा तुम जगाती
निराशा भगाती
सृजन तुम करती
उथान करती
जीवन तुम रचती
प्रज्ञा बढाती
गौरव तुम लाती
रेगिस्तानी जड़ता मिटाती
हरियाली सजाती
जीवन तुम रचती…
जीवन तुम रचती…