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बॉस्टन ब्लास्टः मैच्योर अमेरिका, फर्जी हम

  Tuesday April 16, 2013

मशहूर बॉस्टन मैराथन में हुए दो धमाकों से पूरी दुनिया दहल गई है। अब तक तीन लोगों की मौत हो चुकी है। 100 से ज्यादा घायल हैं। इसका मकसद कुछ भी रहा हो, मुझे समझ नहीं आता कि कोई इस तरह के काम को सही कैसे ठहरा सकता है। अगर आप किसी खास धर्म के लोगों को निशाना बनाना चाहते हैं तो इस तरह की वारदात किसी काम की नहीं, क्योंकि आप नहीं जान सकते कि भीड़ में कौन-कौन होगा। दुनिया की सबसे चर्चित मैराथन की फिनिश लाइन पर लगभग हर धर्म के लोग होंगे। अमेरिका में हुआ यह हमला किसी भी तरह भारत में होने वाले हमलों से अलग नहीं है। यहां भी भीड़ भरे बाजारों में हर धर्म के लोग निशाना बनते हैं और मारे जाते हैं।

तब उन्हें हासिल क्या हुआ? उनकी सोच से देखा जाए तो बस वे अपने भटके हुए मकसद की तरफ ध्यान खींचना चाहते हैं। उनका मकसद हासिल हुआ हो या नहीं, 11 सितंबर 2001 के बाद हुए इस हमले से एक बात तय है कि वे लोग अपनी तैयारी अच्छे से करते हैं।

2001 में जब 9/11 हुआ था, तो पहले विमान के वर्ल्ड ट्रेड टावर पर टकराने के बाद दुनियाभर के सारे कैमरे वहीं टिक गए थे। और दूसरे विमान का वर्ल्ड ट्रेड टावर से टकराना सबने देखा। यही पहले विमान की टक्कर का मकसद था। इस भयानक घटना को दुनिया ने लाइव देखा। रिऐलिटी टीवी का इससे असरदार रूप कभी नहीं देखा गया। और घटना का इससे ज्यादा असर हो भी नहीं सकता था। इस बार भी मामला कुछ वैसा ही है। यह मैराथन एक ऐसा ही इवेंट है जिस पर दुनियाभर की नजर रहती है। सिर्फ फिनिश लाइन नहीं, कैमरे इस पूरी रेस को कवर करते हैं। दुनियाभर में इसका लाइव प्रसारण होता है। इस बार भी यह रिऐलिटी टीवी शो जैसा था। लोगों को समझ में आने में कुछ वक्त तो लगा, लेकिन असर पूरा हुआ।

हो सकता है यह तुलना कुछ ज्यादा लगे, लेकिन मैं इन धमाकों की तुलना ग्रीनपीस के काम करने के तरीके से करता हूं। वे अपने फटॉग्राफरों को तैयार रखते हैं, अचानक कुछ अजीब कर देते हैं। और इससे पहले कि अधिकारी कुछ समझ कर ऐक्शन ले पाएं, वे अपना काम कर लेते हैं और इसकी तस्वीरें दुनियाभर में फैल जाती हैं। बस, उनका मकसद हल हो जाता है।

यहां एक और तुलना हो सकती है। इस तरह की घटनाओं पर अमेरिका का रिऐक्शन और हमारा रिऐक्शन। जैसा कि हमने बॉस्टन में भी देखा, सरकार की प्रतिक्रिया फौरी, निर्णायक और तसल्ली देने वाली थी। कुछ भी गोल-मोल नहीं कहा गया। जाहिर था कि अधिकारी ठोस बात कर रहे हैं। टुच्ची राजनीति भी नहीं हुई। कम से कम खुलेआम तो नहीं। ओबामा ने हमले के फौरन बाद कहा - मैंने कांग्रेस में दोनों पार्टियों को नेताओं को जानकारी दे दी है और हम इस बात को लेकर किसी शुबाह में नहीं हैं कि ऐसे दिन कोई भी डेमोक्रैट या रिपब्लिकन नहीं होता। हम अमेरिकी हैं और अपने साथी नागरिकों के लिए एकजुट हैं।

इसकी तुलना में आप हमारे सीनियर अफसरों या मंत्रियों के रिऐक्शन देखिए। वे स्वाभाविक नहीं होते। उनमें कुछ भी ठोस नहीं कहा जाता। या तो किसी अफसर का मूर्खतापूर्ण बयान आता है या फिर कोई मंत्री बकबक करता है। विपक्ष भी हाथ धोकर इस्तीफा मांगने खड़ा हो जाता है। बस, इसके बाद दोनों समझते हैं कि काम पूरा हुआ। फिर वे अपने असली काम पर आगे बढ़ जाते हैं - कुशासन।

बेशक, जो तकनीक, खुफिया सूचनाएं और काम करने की आजादी विकसित देशों की जांच एजेंसियों को हासिल हैं, उनकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। आपको याद होगा, अभी हैदरबाद ब्लास्ट के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने इश्तेहार देकर जनता से धमाकों के बारे में सूचनाएं मांगी थीं। और एक जीमेल आईडी भी दी गई थी। यह न सिर्फ गैरपेश्वराना है, बल्कि इससे पता चलता है कि हमारे अधिकारी डाटा सिक्योरिटी और बाकी बातों को लेकर किस कदर नौसिखिये हैं।

पर, सोचा जाए तो उन्हें भी दोष क्या देना! उन्हें कैसे हालात में काम करना पड़ता है! सीनियर अफसर अपने लिए पसंदीदा पोस्टिंग या फिर एक्सटेंशन पाने की एवज में अपने राजनीतिक आकाओं की चापलूसी के नाम पर किस-किस तरह से टांग अड़ाते हैं। और तो और मंत्री ही दखलअंदाजी से पीछे नहीं रहते। अक्सर अपना असली काम करने से ज्यादा मेहनत इस बात के लिए होती है कि अपने राजनीतिक विरोधियों को काबू किया जा सके।

असल में, मौजूदा हालात में तो हमें जितने आतंकी हमले हो रहे हैं, उनके लिए शुक्र मनाना चाहिए। ये और ज्यादा हो सकते हैं। साथ ही हमें जासूसी एजेंसियों में बहुत मुश्किल हालात में काम कर रहे अपने उन अफसरों को भी याद करना चाहिए, जो ऐसे नायक हैं जिनका जिक्र तक नहीं होता।

इस "याद करने" से मुझे एक और बात याद आई। सोशल मीडिया पर हर कोई, खासतौर पर खाए-अघाए लोग, बॉस्टन ब्लास्ट में मारे गए लोगों को याद करने, उनके लिए दुआएं करने को कह रहे हैं। मुझे पता है कि इसके लिए मुझे खूब कोसा जाएगा, लेकिन ये लोग इतने नकली, इतने सस्ते लगते हैं। मैं कल्पना कर सकता हूं कि इस तरह के फर्जी दुख जताने वाले मेसेज करते वक्त ये सिलेब्रिटी शराब एंजॉय कर रहे होते होंगे। और आपने ध्यान दिया होगा कि जब पश्चिमी देशों में ऐसा कोई हादसा होता है तब इस तरह के मेसेज कुछ ज्यादा होते हैं, या कम से कम ज्यादा जल्दी से आते हैं। मुझे समझ में नहीं आता कि ऐसा क्यों है। क्या आपको कोई आइडिया है?

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